उच्चतम अदालत ने कानून के इस्तेमाल पर स्थिति साफ की
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर घर की चारदीवारी के भीतर एससी-एसटी समुदाय के किसी शख्स के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की गई है और उसका कोई गवाह नहीं है, तो यह कृत्य अपराध के दायरे में नहीं आएगा। उच्चतम अदालत ने एससी-एसटी कानून के इस्तेमाल पर स्थिति साफ कर दी है। एससी-एसटी समुदाय की एक महिला के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी के आरोपी के खिलाफ एससी-एसटी धारा के तहत दर्ज आरोपों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
गौरतलब है कि देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी-एसटी एक्ट) को लेकर शुरू से विवाद चलता आ रहा है। देश में इसके दुरुपयोग के कई मामले सामने आ चुके हैं।
अदालत ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने कहा कि एससी-एसटी ऐक्ट सिर्फ इस आधार पर लागू नहीं होगा कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति से संबंध रखता है। इस मामले में यह भी देखा जाएगा कि आरोपी ने क्या इस मकसद से शिकायत करने वाले को बेइज्जत किया है कि वह अनुसूचित जाति या जनजाति का है। ऊंची जाति के शख्स को अपने कानूनी अधिकारों के इस्तेमाल से सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता कि शिकायतकर्ता एससी-एसटी कम्युनिटी का है। बेंच ने यह भी कहा कि वर्तमान केस में आरोपी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता, जिसके कारण याचिका खारिज की जाती है।
पब्लिक प्लेस का मतलब
पीठ ने अपने 2008 के एक फैसले का हवाला देते हुए सार्वजनिक अपमान और बंद कमरे में कही गई बात का फर्क बताया। कोर्ट ने कहा, अगर घर के बाहर जैसे किसी घर के सामने, उसके कैंपस में अपराध किया जाता, जिसे घर के बाहर की सड़कों से देखा जा सकता है, तो वह निश्चित तौर पर पब्लिक प्लेस माना जाएगा। कोर्ट ने उस फैसले में स्पष्ट किया था कि जब अपमान चारदीवारी के बाहर, घर के लॉन या बालकनी में किया गया हो, जहां से लोगों ने देखा या सुना हो तब उसे अपराध माना जाएगा। इस मामले में महिला ने बंद कमरे में अपमानित करने की बात कही है, जिसे किसी अन्य ने नहीं सुना।