रोजाना हो रहे हैं 10 लाख टेस्ट, 5 करोड़ लोगों के सैंपल्स की जांच
नई दिल्ली। कॉन्वलसेंट प्लाज्मा (सीपी) थेरेपी कोरोना वायरस संक्रमण के गंभीर मरीजों का इलाज करने और मृत्यु दर को कम करने में कोई खास कारगर साबित नहीं हो रही है। यह जानकारी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से वित्त पोषित बहु-केंद्रीय अध्ययन रिपोर्ट में सामने आई है।
5 करोड़ से अधिक सैम्पल्स की जांच पूरी
आईसीएमआर की ओर से बताया गया है कि कोविड-19 मरीजों पर सीपी थेरेपी के प्रभाव का पता लगाने के लिए 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 39 निजी और सरकारी अस्पतालों में ‘ओपन-लेबल पैरलल-आर्म फेज द्वितीय मल्टीसेन्टर रेंडमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल ‘ (पीएलएसीआईडी ट्रायल) किया गया था। इस बीच, देश में कुल 5 करोड़ 06 लाख 50,128 कोरोना संक्रमित लोगों के सैम्पल्स की जांच पूरी हो गई है। पिछले 10 दिन में ही रोजाना 10 लाख टेस्ट किये गए हैं।
464 मरीजों को रिसर्चमें किया शामिल
आईसीएमआर की ओर से बताया गया कि सीपी थेरेपी में कोविड-19 से उबर चुके व्यक्ति के रक्त से एंटीबॉडीज ले कर उसे संक्रमित व्यक्ति में चढ़ाया जाता है, ताकि उसके शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। अध्ययन में कुल 464 मरीजों को शामिल किया गया। कोविड-19 के लिए आईसीएमआर की ओर गठित राष्ट्रीय कार्यबल ने भी इस अध्ययन रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद इससे सहमति जताई है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 27 जून को जारी किए गए कोविड-19 के ‘क्लिनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल’ में इस थेरेपी के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी। अध्ययन में कहा, ‘‘ सीपी मृत्यु दर को कम करने और कोविड-19 के गंभीर मरीजों के इलाज करने में कोई खास कारगर नहीं है। ” अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 के लिए सीपी के इस्तेमाल पर केवल दो परीक्षण प्रकाशित किए गए हैं, एक चीन से और दूसरा नीदरलैंड से। इसके बाद ही दोनों देशों में इसे रोक दिया गया था।