प्रहरी संवाददाता, मुंबई। पिछले पांच साल की तुलना में वर्ष 2021 में भारत की नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल 2021 में जितने लोगों ने दूसरे देशों में जा बसने का फैसला किया, उतने सुपररिच यानी बेहद अमीर लोग पिछले पांच साल में भी भारत से नहीं गए थे।
वर्ष 2021 में कुल 1,63,370 लोगों ने देश की नागरिकता छोड़ दी है। इसके पीछे क्या जांच एजेंसियों का डर है या सरकार की नीयत पर भरोसा नहीं रहा, यह शोध का विषय है। हालांकि देश से भागने वालों में अक्सर लोन डिफॉल्टर और जालसाज रहे हैं, लेकिन अब सुपर रिच भी देश छोड़ रहे हैं।
भाजपा सरकार हमेशा से दावा करती रही है कि उसके कार्यकाल में देश में भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, पारदर्शी तरीका अपनाया जाता है, प्रशासन भी काफी बेहतर हुआ है। बिजनेस करना पहले से काफी आसान हुआ है।
देश की आर्थिक रफ्तार भी काफी तेज है और भारत में तरक्की के बेशुमार मौके उपलब्ध हुए हैं। लेकिन भाजपा के दावे की पोल खुल रही है। भारत में सरकार बनाने में यहां के अमीरों का खुला समर्थन रहा है, लेकिन अब यही तबका पलायन कर रहा है।
बता दें कि भारत की मौजूदा सरकार की सरपरस्ती में ही कई नए नवेले अमीर बने हैं। सरकार ने उन्हें हद से अधिक संसाधन रेवड़ी की तरह बांटे हैं। इन उद्योगपतियों के हित के लिए सारे नियम कायदे सरल किए गए हैं। कारोबार के लिए सस्ती जमीन से लेकर टैक्स छूट दी। बैंकों से आसानी से कर्ज मिला। सत्ता के करीबी लोगों की पहुंच ने नए नवेले अरबपतियों की राह आसान बनाई है।
सबसे बड़ी बात यह है कि सुपररिच घराना देश में सबसे ज्यादा वेल्थ क्रिएटर रहे हैं। भारत के सुपररिच का यह तबका अब सरकार के दावों और उसकी नीयत पर भरोसा नहीं कर पा रहा है। यह तबका सरकारी एजेंसियों से खुद को खतरा महसूस करने लगा है।
ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2020 में भारत के 7,000 सुपररिच लोग हमेशा के लिए देश छोड़कर चले गए। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर इतनी बड़ी संख्या में सुपररिच लोग देश क्यों छोड़ रहे हैं? क्या सरकार के खिलाफ मुंह खोलने की जुर्रत करनेवाले सुपररिच लोगों पर सख्ती बरती जा रही है?
सरकारी आंकड़े से पता चला है कि वर्ष 2014 के बाद से अब तक लगभग आठ साल में कथित आर्थिक अपराधियों पर एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी ईडी के छापों में 26 गुना की तेजी आई है। वर्ष 2014 से पहले के 10 वर्षों में केवल 112 छापे हे पड़े थे। साल 2004 से साल 2014 के बीच ईडी ने इन छापों में 5,346 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी, जबकि वर्ष 2014 के बाद यह रकम बढ़कर 95,432 करोड़ हो गई है।